panchtantra ki kahaniya एक दिन, चार ब्राम्हण वन के भीतर घूम रहे थे | कुछ देर बाद उनको एक आश्रम नजर आया | उस आश्रम मे रहते थे, योगी भैरव नंदा | चारों ब्राम्हण उस आश्रम की ओर गये, योगी जी बाहर निकल कर पूछे, कौन हो तुमलोग, और यहाँ किसलिए आए हो |
गुरु जी, हमने आपके अनोखी शक्ति के बारे मे बहुत सुना है, आप से मिलकर हम धन्य हुए, क्या आप हमे भी अपना चमत्कार दिखाएंगे | योगी जी ने सोचा, ये ब्राम्हण अच्छे इरादे से यहा आए है, मुझे इनकी साहायता करनी चाहिए | योगी जी आश्रम के अंदर गए और चार बेलचे लाकर ब्राम्हनों को सौंप दिया |
ये बेलचे ले जाओ और गाँव के पास एक तलाब है, उस तलाब के पास एक अंजीर का वृक्ष है, उस वृक्ष के पास जो लाल मिट्टी है, उसे खोदो, और अपना किस्मत आजमाओ | चारों ब्राम्हण बेलचे लेकर उस जगह पर आ पहोचे, और खोदना ⛏️ शुरू किया | पहला ब्राम्हण को खोदते समय एक तांबे की चट्टान मिली।
ओ-ओ कमाल है, तांबे की चट्टान, चलो चलकर हम आपस मे बाँट ले | अरे नहीं, हमे सोना चाहिए, और अभी तक नही मिला, हमे खोदते रहेना चाहिए | तुम चाहो तो जा सकते हो | पहेला ब्राम्हण संतुष्ट था, वह वापस चला गया | ओ ईश्वर, चांदी, मै कितना भाग्यशाली हूँ, चलो चलकर इसे आपस मे बाँट लेते है,
सायद योगी जी, इसी खजाने के बारे मे, बात कर रहे थे |हमे अभी तक सोना नहीं मिला, हम कोशिस करते रहेंगे, तुम चाहो तो जा सकते हो | दूसरा ब्राम्हण, अपने प्राप्ति से संतुष्ट था, वह वापस चला गया | देखो सोना मिल गया, चलो इसे बोरी मे भर कर ले जाए |
अरे ना-ना लगता है, ये कोई विशेष जगह है, पहले तांबा फिर चांदी फिर सोना | अगर मै थोडा, और महेनत करूंगा, तो शायद मुझे हीरे मिल जाये | तुम जा सकते हो,मै हीरे लेकर ही वापस आऊँगा | इतने लालची भी मत बनो, अब अंत मे कुछ नहीं मिलेगा, हमको पहले भी इतना सब कुछ तो मिला है, चलो चलते है |
ना मै तो हीरे ले के ही आऊँगा, तुम देखलेना | चौथा ब्राम्हण खोदता ही रहा, और थक भी गया,और बहोत देर भी हो गई थी, परंतु वह खोदना बंद नहीं किया | खोदते- खोदते जमीन पर एक शुराग बन गया, और अचानक ब्राम्हण उसी मे फिसल गिर पड़ा, खुद को उसने एक, अलग सी दुनिया मे पाया |
और ऊपर उठा,तो उसने एक, आदमी को देखा,जिसके सर पर एक, चक्र घूम रहा था | ब्राम्हण हैरान रह गया | उसने पूछा, तुम कौन हो, और यहा क्या कर रहे हो | और तुम्हारे शिर पर ये,चक्र कैसा | ब्राम्हण के ऐसा पूछते ही, अचनक वों चक्र, उसके शिर पर आ गया, और घूमने लगा |
ये-ये क्या है, इस चक्र को मुझसे दूर करो | मै कुछ नहीं कर सकता, ये सब ईश्वर के हाथ मे है, इधर लालची लोग गिरते है, अब तुम्हें इस खजाने की रक्षा करनी पड़ेगी, तुम्हें ना भूक लगेगी, ना प्यास, ना तुम्हारे उम्र बड़ेगी, तुम मृत्यु से भी, मुक्त रहोगे | पहले ये बताओ, मै इस चक्र से कैसे, मुक्त हो जाऊ | जब लालची लोग, ज्यादा खोदते है, तो इधर गिर पड़ते है, कोई और तुम्हारी तरह ऐसे गिरेगा |
अरे नहीं, इतनी बड़ी जिम्मेदारी, मै इस चक्र का भार बरदास नहीं कर सकता, ये कब से तुम्हारे सिर पर था | नहीं पता, मै कई वर्ष पसले यह आया था, जब महाराज राम का राज चल रहा था | मुझे तांबा, चांदी, और सोना भी मिला, परंतु मै हीरे की लालच मे यहा गिर पड़ा, बस मेरे पास बोलने के लिए और कुछ नहीं है |
ऐसा बोलकर साधक, उसी सुराग से वापस चल गया | वो तो यही खोद रहा था, पता नहीं कहा चला गया, ओ सुनिए, मेरा मित्र यहा पर मेरे साथ ही खोद रहा था, क्या आप ने उसे कही देखा है | साधक हसने लगा, और तीसरे ब्राम्हण को सारी घटना बताई,
ब्राम्हण मजबूर और निराश होकर, घर वापस चला गया | तांबा, चांदी, और सोना मिलने के बाद भी, तुम रुके नहीं | अगर तुम भी हमारे साथ वापस लौट जाते, तो ये सब नहीं होता | मुझे माफ कर दो दोस्त, अब मै तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता |
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